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कौन है?-

मोहन के पिता ने जो बात कही वह काफी दिलचस्पी थी। नदी के उस पार आरव ने खंडहर जैसे टूटे फूटे मकान जरूर देखे थे। मगर उस वीरान जगह पर खंडहरों में तब्दील हुए नगर की कहानी आज तलक उसे किसी ने नहीं बताई थी। ना ही उसने कभी इस बात की जरुरत समझी थी। आरव शापित गाँव की बात सुनकर अचंभित था।  आरव को ठकराल सर की काफी चिंता होने लगी। क्योंकि वह इतने जख्मी थे कि उन्हें तत्काल हॉस्पिटल ले जाना चाहिए था। रात का वक़्त था। इसलिए आरव उन्हें जैसे तैसे मोहन के घर तक ले आया था। काफी जद्दोजहद के बाद आरव उन्हें होश में लाने में सफल हुआ। होश में आते ही इंस्पेक्टर ठकराल ने जो हरकत की वह आरव के लिए अप्रत्याशित थी। ठकराल अपने आसपास किसी भी इंसान को देख कर चिल्लाने लगते थे। पता नहीं क्यों वह इतना डर रहे थे? जबकि इस वक्त वह पूरी तरह महफूज थे। ठकराल ने बताई हुई एक बात आरव के दिमाग में काफी देर से फुदक रही थी कि उस नाग को मुझ से दूर रखो। जबकि उस वक्त कमरे में कोई नाग नहीं था---- ना ही कोई मदारी था। इंस्पेक्टर ठकराल की बात सुनकर आरव काफी हैरान था। "तुम इंस्पेक्टर साहब की फिक्र करना छोड़ दो आरव।" मोहन के पिता ने आरव की उलझन पकड़ते हुए कहा था। यकीन मानो उन्हें कुछ नहीं होगा। मारना होता तो वह कब की उन्हें मार चुकी होती। मेरे ख्याल से वह इंस्पेक्टर ठकराल को इस केस से डरा धमका कर हटाना चाहती थी। काफी हद तक वह अपने इरादे में कामयाब भी हो गई है।" "चाचा जी मुझे खुशी है कि आपने मेरी बात पर यकीन किया। लेकिन मेरी उलझन अभी सुलझी नही है। और तब-तक नही सुलझेगी जब तक मुझे इस बात का पता नहीं लग जाता कि इस्पेक्टर ठकराल को मार्गरेटा के अपहरण का कैसे पता चला? क्योंकि अब तक मैं समझता था निर्मोही ने ठकराल को इंफॉर्मेशन दी होगी। जबकि मैं सरासर गलत था।" "तुम गलत इसलिए थे कि क्योंकि शैतानी रूह की फितरत को अभी तक नहीं समझ पाए थे। सब कुछ उसी का किया धरा है। उसी ने इस्पेक्टर ठकराल को बुलाया होगा। ठकराल के साथ-साथ शैतानी रूह उसके कार्य में विघ्न डालने वाले किसी भी इंसान को बक्षने वाली नहीं है।" "लेकिन निर्मोही को ऐसे सपने क्यों आते हैं?" आरव तिलमिला उठा। "शुक्र मनाओ की अब तक उसने निर्मोही को किसी भी तरह का नुकसान नहीं पहुंचाया है। जबकि वह चाहती तो नुकसान जरूर पहुँचा सकती थी। मुझे लगता है निर्मोही के थ्रू वह मौत का संदेश देती होगी। तुमने बताया कि निर्मोही की मां ने अपनी दोनों बेटियों को जन्म देते ही त्याग कर दिया था। क्योंकि दोनों की कमर में नाग का निशान था। मुझे लगता है निर्मोही की मां को चेतावनी देने वाला वह भिक्षुक कोई आम इंसान नहीं था। जरूर वह कोई ऐसा बहरूपिया था जो भूतकाल और भविष्य से पूरी तरह ज्ञात था। वह जानता था कि जिस किसी की बॉडी पर नाक का निशान होगा उसकी मौत पहले से सुनिश्चित हो चुकी है। मार्गरेटा का अपहरण भी उसी बहरूपिया ने किया था जो तुम्हारा रूप लेकर आया था। यकीन मानो मैं दावे के साथ कह सकता हूँ कि वह बहरूपिया और कोई नहीं मगर वही शैतानी रूह होगी जो खूनी खेल खेलने के लिए मरी जा रही है। तुम्हारे ठकराल सर के ऊपर भी उसी का साया मंडराता रहा है। यह बात मुझे तुम्हें समझाने की जरूरत नहीं है। क्योंकि अभी-अभी ठकराल होश में आते ही बोला था कि 'इस नाग को मुझ से दूर रखो।' "आपने बिल्कुल सही अनुमान लगाया है चाचा जी। शैतानी रूह का साया इंस्पेक्टर ठकराल के साथ ही आया होगा। तभी वह ऐसा बिहेव कर रहे हैं जैसे हमें पहचानते ही नहीं हो" "मुझे लगता है तुमने बिलकुल सही फैसला लिया आरव, जो ठकराल सर को मेरे घर ले आया।" काफी देर से पिताजी और दोस्त की बातें सुन रहे मोहन को बोलने का मौका मिल गया। "अस्पताल के चक्कर में पडता तो हो सकता है शैतानी रूह ठकराल सर को मार देती।" मोहन ने जिस संभावना के तरफ इशारा किया था उसे झुठलाया नहीं जा सकता। आरव सोच रहा था कि तभी चाचा जी बोल उठे। "मोहन बिल्कुल ठीक कह रहा है। कम से कम अपने घर में ठकराल साहब महफूज है। यहां कोई भी शैतानी शक्ति उनका बाल तक बांका नहीं कर सकती।" "वह तो ठीक है चाचा जी। मगर हम पुलिस प्रशासन को क्या बताएंगे। अग्रवाल के घर वालों को क्या जवाब देंगे। इतने जख्मी इंसान को हॉस्पिटल ले जाने की बजाय कोई घर में रखता है भला।" चाचा जी के चेहरे पर कुछ देर के लिए संजीदगी भरे भाव उभर आये। फिर वह बोल उठे। "मामूली चोटे है उन्हें कुछ नहीं होगा। तुम ज्यादा सोचना छोड़ दो। सुबह होते ही हम उन्हें हॉस्पिटल में एडमिट कर देंगे। तुमने जो कुछ भी किया ठकराल के भले के लिए ही किया है।" आरव के दिमाग पर से काफी बोझ हल्का हो गया। चाचा जी की बात उसे बिल्कुल सही लगी। "एक बात मेरी समझ में नहीं आई यह सब अचानक कैसे शुरू हो गया?" मोहन अपने पिता से मुखातिब हुआ।  "मैं भी कब से यही सोच रहा हूँ।" चाचा जी बोले। "महात्मा के कहे अनुसार लोगों ने नदी के उस तरफ बसे शहर को खाली कर दिया था। उस दिन के बाद शाप का असर खत्म हो गया था। उसके बाद कभी कोई अनहोनी नहीं हुई। मेरे दादाजी बताते थे कि पुरानी हवेली के तहखाने में महात्मा ने शाप को बंधक बना दिया था।" "आपकी बातें मेरे दिमाग में नहीं घुस रही।" उलझा हुआ आरव बोल उठा। "आप क्या कहना चाहते हैं जरा खुल कर बताइए चाचा जी। आप यह तो नहीं कह रहे कि बरसों पहले जो शाप उस तबाह हुए नगर पर उतरा था उसका प्रभाव दोबारा शुरू हो गया है?" "आसार तो कुछ ऐसे ही है। पुरानी हवेली के खंडहरों में जाकर पता लगाना पड़ेगा। तहखाने का दरवाजा किसी ने खोला तो नहीं है ना? अगर ऐसा हुआ है तो समझ लेना मौत का सिलसिला दोबारा शुरू हो गया है।" (क्रमश:)

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1 Comments

Gunjan Kamal

27-Sep-2023 09:04 AM

शानदार

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